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Saturday 3 August 2019

Bhramaji Temple


Brahma ji Temple

राजस्थान में बाडमेर जिले के शहर बालोतरा से लगभग दस किलोमीटर दूर गढ सिवाडा रोड पर दिनांक 5 मई, 1961 को गांव आसोतरा के पास वर्तमान ब्रह्म धाम असोतरा के ब्रह्म मन्दिर की नीव दिन को ठीक 12बजे अपने कर कमलो से रखी। जिसका शुभ मुहूत स्वंम आधारित था। ब्रह्म की प्रतिमा के स्नान का पवित्र जल भूमि के श्वपर नही बिखरे जिसके संदर्भ में उन्होने प्रतिमा से पाताल तक जल विर्सजन के लिए स्वंयं की तक्निक से लम्बी पाईप लाईन लगावाई। 23 वर्ष तक चले निर्वहन इस मन्दिर निमार्ण में राजस्थान की सूर्य नगरी जोधपुर के छीतर पत्थर को तलाश कर स्वंयं के कठोर परिश्रम से बिना किसी नक्शा तथा नक्शानवेश के 44 खम्भों पर आधारित दो विशाल गुम्बजों के पिश्चम में एक विशालकाय शिखर गुम्बज तथा उत्तर-दक्षिण में पांच-पांच, कुल दस छोटी गुम्बज नुमा शिखाएं, हाथ की सुन्दर कारीगरी की अनेक कला कृतियां जिनकी तलाश की सफाई व अनोखे आकारो में मंडित प्रतिमायें से जुडा पवित्र व शान्त वातावरण इस विशाल काय ब्रह्म मन्दिर के एक दृढ संकंल्पी चिरतामृत का समर्पण दर्शनार्थी को आकिर्षत किए बिना नही रहता। ब्रम्हाधाम आसोतरा के ब्रह्म मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्णकर श्री खेतेश्वर ने दिनांक 5 मई, 1984 को सृष्टि रचता जगत पिता भगवान ब्रम्हाजी की भव्य मूर्ती को अपने कर कमलो से विधि वत प्रतिष्ठत किया। प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दिन महाशान्ति यज्ञादि कार्यक्रम करवाये गये। इसी पुनीत अवसर पर लगभग ढाई हजार से भी ज्यादा संत महात्माओं ने भाग लिया। तथा लगभग ढाई लाख से भी ज्यादा श्रद्वालु भक्तजनों ने इस विराट पर्व का दर्शन लाभ उठाकर भोजन प्रसाद ग्रहण किया भोजन प्रसाद कार्यक्रम तो उस दिन से नि:शुल्क चालु हैं। जिस दिन उक्त मन्दिर की नीव का पहला पत्थर धरती की गोद में समिर्पत हुआ। वही पत्थर वर्तमान में आज दिन तक तकरीबन तीस वर्षो से लाखों श्रद्वालु भक्तो को नि:शुल्क भोजन प्रसाद दे चुका है। तथा भविष्य में भी देता रहेगा। ऐसे विग्न की घोषणा का स्वरुप युग प्रेरक श्री खेतेश्वर भगवान ने ही बनाया था। जो आज भी पूर्ण रुप से चल रहा हैं। आम बस्ती से मीलों दुर जंगल की सन-सत्राजी हवाओं तथा मखमली रेत के गुलाबी टीबों के बीच प्रतिष्ठा दिवस की वह मनमोहनी रात्री का समय क्रित्रम बिजली की जग मगाहट को फूदक-फूदक कर नृत्य करती रोशनी से ऐसे सलग रही थी जैसे धरती पर देव राज्य स्वर्ग उतर आया हों। प्रात:काल की सुन्दरीयां भोंर में पक्षियों की चहचहाट की मधुर वाद्य वेला दर्शनार्थीं श्रद्वालुओं के हदय कमलों को मन्त्र मुग्ध सा कर देती हैं। श्री खेतेश्वर ने प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दूसरे दिन 6 मई, 1984 को लाखों दर्शनार्थियों के बीच मूर्ति प्रतिष्ठा के 24 घन्टे पशचात दिन को ठीक 12बजे साधारण जन के लिए एक प्रकार से वज्रपात सा लगा। अब श्री खेतेश्वर सृष्टि कर्ता ब्रम्हाजी के सम्मुख जगत कल्याण की मंगल कामना करते हुए अपना अवलोकिक नश्वर शरीर त्याग कर ब्र्ह्मलीन हो गए। आदि शिक्त के विधान की विडम्बना इस विलक्षण्यी दृश्य से वहा उपस्थित श्रद्वालु भाव विभोर होकर श्री खेतेश्वर भगवान की जय जयकार के उद्घोषों से आकाशीय वातावरण को गूंजायमान करने लगे। तत्पशचात उनका पवित्र नाश्वान शरीर सनातन धर्म की हिन्दु संस्क्रति के अनुसार तीर तलवार, भालो, ढालो, की सुरक्षा तथा साष्टांग प्रमाण नौपत व नंगारों व मृदंगन के साथ मोक्ष प्रिप्त राम नाम धून से सारा वातावरण एक मसिणए वैराग्य का स्वरुप धारण करके अग्नि को समर्पित किया गया। चन्दन, काष्ठ, श्रीफल, नरियल, तथा घृत आदि की अन्तिम संस्कारिक आहुतिया के मंन्त्रों से वैराग्य वातावरण ने तत्वों से जुड़ित देहिक पुतले को अग्नि में, जल में, वायु में, आकाश में व पृथ्वी में पृथक-पृथक विलय का वोध कराया। जो एक ईश्वरीय शक्ति स्वरुप पवित्र आत्मा विश्व शान्ति की साधना में अमृत को प्राप्त हुई।
ऐसी महान आत्मा को सत् सत् वन्दन! प्रित वर्ष युग प्रेरक श्री खेतेश्वर भगवान की पुण्य तिथी ब्रहाधाम आसोतरा में विशाल समारोह पूर्वक मनाई जाती हैं। वैशाख शुक्ला छठवी को ब्रम्ह धाम पर हर जाति, सम्प्रदाय तथा वर्ग के लोग हजारो की संख्या में आकर उनकी बैकुठ धाम समाधि पर पुंष्पांजंली अर्पित करते हैं। श्रद्वालु ऐसा करके अपने को धन्य सा समझते हैं। दो तीन दिन का यह ‘आध्यात्मिक मेला’ प्रत्येक जाति तथा वर्ग को अनादिकाल की संस्क्रति की प्रतिमाओ को बटोरे वर्तमान युग निर्माण की प्रेरणाओं से ओत-प्रोत दर्शन कराता है। इस सम्पुर्ण कार्यक्रम का संचालन भारतीय संस्क्रति की एतिहासिक जाति का वर्ग श्री राजपुरोहित समाज एक ‘न्यास’ रुपी संस्था द्वारा कराता है। राजपुरोहित समाज के भारतिय संस्क्रति के अन्तर्गत महत्पूर्ण योगदान के प्रित जगत स्वामी विवेकानन्दजी ने लिखा है-भारत के पुरोहितों को महान बोद्विक और मानसिक शक्ति प्राप्त थी। भारत वर्ष की आद्यत्मिक उन्न्ति का प्रारम्भ करने वाले वे ही थे और उन्हौने आश्चर्यजनक कार्य भी संपन किया। वर्तमान में इस आश्चर्य जनक दर्शन का जीता जागता दर्शन ब्रह्म धाम आसोतरा हैं। जहॉं ब्रह्म सावित्री को संग-संग विराजमान करके ब्रम्हाजी के परिवार की प्रतिमाए प्रतिष्ठ की गयी। जिनके आपस के श्रापो का विधान तोडकर फिर से नए प्रेरणा का मार्ग दर्शन कराया । जिनको वर्तमान में हम कोटि-कोटि शत वन्दन् करते।
source santsristhan.org website


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